श्रीमद्भागवत गीता अध्याय १ | प्रथम श्लोक

 श्रीमद्भागवत गीता अध्याय १ | प्रथम श्लोक |



सभी ग्रंथों में से श्रीमद भगवद गीता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । इसकी रचना रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी । भगवत्मीत्ता पूर्णत अजून और उनके सारथी श्रीकृष्ण के बीच का संवाय पर आधारित पुस्तक है। गीता में ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्ति योग राज योग, एकेश्वरवाद आदि की बहुत सुंदर ढंग से चर्चा की गई है । गीता मनुष्य को कर्म का महत्व समझाती 1 गीता में श्रेष्ट माबत जीवन का सार बताया गया है। इसमे १८ ऐसे अध्याय है जिनमे आपके जीवन से जुड़े हर सवाल और आपकी हर समस्या का हल मिल सकता है। का जवाब ■ गीता का पहला अध्याय अर्जुन विषाद योग है । इसमे ४६ श्र्लोको द्वारा अर्जुन की मन स्थिती का वर्णन किया गया, कि, किस तरह अर्जुन अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने से डरते हैं और किस तरद भगवान कृष्ण उन्हें समझाते हैं। तो आइये सुनतें प्रथम अध्याय का पेहला श्लोक


धृतराष्ट्र उवाच धर्मक्षेत्रे  कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सवा मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय |


अर्थात संजय से पुछते है है संजया धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से दूए मेरे तथा एकत्र पाण्डू के पुत्र वे किया क्या कर रहे है। धृतराष्ट्र जानना चाहते थे की अधिर धर्म क्या हो रहा था । धृतराष्ट्र अंधे थे लेकीन आखो से अंधे थे, मन और माष्टिष्ट से नही उन्हें पता था की वो धर्म के साथ नहीं, पर धर्म तो वहा था जहा श्रीकृष्ण थे |

   पुत्र मोह मे उन्होंने शांती की जगाह युद्ध को चुना था | वो भालिभाती इसका परिणाम जाणते थे | अपने जीवन मे हम कुछ गलत करते है तो हमे पता होता है की शायद इस्का परिणाम अचा ना हो, ऐसा ही drutrashtra के साथ हुवा |

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